क्या बेचकर🔸 हम खरीदे फुर्सत ए जिंदगी,
सब🔸 कुछ तो गिरवी पड़ा है,
ज़िम्मेदारी के 🔸बाजार में।
आहिस्ता चल ऐ 🔸ज़िंदगी कुछ क़र्ज़ चुकाने बाकी हैं,
कुछ दर्द मिटाने बाकी हैं कुछ🔸 फ़र्ज़ निभाने बाकी हैं।
अब तो अपनी 🔸तबियत भी जुदा लगती है,
साँस लेता हूँ तो ज़ख्मों को🔸 हवा लगती है,
कभी खुश तो 🔸कभी मुझसे खफा लगती है,
ज़िन्दगी तू ही बता तू मेरी 🔸क्या लगती है।
मुझ से नाराज़ है तो 🔸छोड़ दे तन्हा मुझको,
ऐ ज़िन्दगी मुझे रोज़-रोज़ तमाशा 🔸न बनाया कर।