मोहब्बत🔸 मुकद्दर है कोई ख़्वाब नही।
ये वो अदा है जिसमें हर कोई 🔸कामयाब नही।
जिन्हें मिलती 🔸मंज़िल उंगलियों पे वो खुश है।
मगर जो पागल हुए उनका कोई 🔸हिसाब नही।
यकीन था🔸 कि तुम भूल जाओगे मुझको,
खुशी है कि तुम उम्मीद पर🔸 खरे उतरे।
नफरतें लाख 🔸मिलीं पर मोहब्बत न मिली,
ज़िन्दगी बीत गयी मगर राहत 🔸न मिली,
तेरी महफ़िल🔸 में हर एक को हँसता देखा,
एक मैं था जिसे हँसने की 🔸इजाज़त न मिली।
इस मोहब्बत 🔸की किताब के,
बस दो 🔸ही सबक याद हुए,
कुछ तुम जैसे 🔸आबाद हुए,
कुछ हम🔸 जैसे बरबाद हुए।