ऐसी सर्दी🔸 है कि सूरज भी दुहाई मांगे
जो हो परदेस में वो किससे रजाई मांगे !
दो ग़ज सही ये 🔸मेरी मिल्कियत तो है
ऐ मौत तूने मुझे जमींदार🔸 कर दिया।
रोज़ तारों को🔸 नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अंन्धेरे में 🔸निकल पड़ता है।
छू गया जब 🔸कभी ख्याल तेरा
दिल मेरा देर तक 🔸धड़कता रहा।
कल तेरा जिक्र छिड़ गया🔸 था घर में
और घर देर 🔸तक महकता रहा।