न हम-सफर न🔸 किसी हम नशीं से निकलेगा,
हमारे पाँव का काँटा है हमीं 🔸से निकलेगा !
राह के पत्थर से 🔸बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज देते हैं सफर 🔸जारी रखो !
कहीं अकेले में मिल🔸 कर झिंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ जहाँ से 🔸वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे
रोज़ तारों को 🔸नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल 🔸पड़ता है
मोड़ होता है जवानी 🔸का सँभलने के लिए
और सब लोग यहीं आ के फिसलते 🔸क्यूं हैं
एक चिंगारी 🔸नज़र आई थी
नींद से मेरा ताल्लुक़ ही 🔸नहीं बरसों से
ख़्वाब आ आ🔸 के मेरी छत पे टहलते क्यूं हैं