Rahat Indori Shayari
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राहत इंदौरी दोस्तों शायरी जगत के एक महान शायर हैं जो हिंदी और उर्दू दोनों में अपनी शायरी प्रस्तुत करते हैं जो लोगों को खासा पसंद आती है, उनका जन्म दोस्तों 1 जनवरी 1950 को इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ। इसीलिए लोग उन्हें राहत इंदौरी के नाम से जानते हैं।
उनकी शायरी और कविताओं में आपको दुख-दर्द, प्यार-मोहब्बत और राजनीतिक व्यवस्था पर व्यंग की झलक भी देखने को मिल जाएगी। तो इस आर्टिकल में हम आपके लिए लाए हैं उनकी कुछ महत्वपूर्ण शायरी रचना। जो आपको बहुत पसंद आने वाली है।
किसने दस्तक 🔸दी, दिल पे, ये कौन है
आप तो 🔸अन्दर हैं, बाहर कौन है
बुलाती है मगर जाने🔸 का नहीं
बुलाती है मगर 🔸जाने का नहीं
ये दुनिया🔸 है इधर जाने का नहीं
मेरे बेटे किसी से🔸 इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र 🔸जाने का नहीं
अपने हाकिम की🔸 फकीरी पे तरस आता है
जो गरीबों से पसीने की 🔸कमाई मांगे
मैं जानता हूँ कि दुश्मन🔸 भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरह 🔸हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुंह से जो निकले 🔸वही सदाक़त है
हमारे मुंह में 🔸तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
मेरे चेहरे पे🔸 कफ़न ना डालो,
मुझे आदत है मुस्कुराने🔸 की,
मेरी लाश को🔸 ना दफ़नाओ,
मुझे उम्मीद है उस🔸 के आने की !
विश्वास बन के 🔸लोग ज़िन्दगी में आते है,
ख्वाब बन के आँखों में 🔸समा जाते है,
पहले यकीन 🔸दिलाते है की वो हमारे है,
फिर न जाने क्यों 🔸बदल जाते है !
सिर्फ एक दिल 🔸ही है जो बिना,
आराम किये सालों काम🔸 करता है,
इसे हमेशा🔸 खुश रखिये ,
चाहे ये आपका हो या 🔸आपके अपनों का !
ऐसी सर्दी है कि 🔸सूरज भी दुहाई मांगे
जो हो परदेस में वो किससे 🔸रज़ाई मांगे
…फकीरी पे तरस🔸 आता है
अपने हाकिम की फकीरी पे 🔸तरस आता है
जो गरीबों से 🔸पसीने की कमाई मांगे
कहते हैं 🔸जीते हैं उम्मीद पे लोग,
हमको तो जीने की भी🔸 उम्मीद नहीं !
गज़ब का प्यार🔸 था उस की उदास आँखों में,
गुमान तक ना हुवा की वो 🔸बिछड़ने वाली है !
फूंक डालुंगा मैं 🔸किसी रोज दिल की दुनिया,
ये तेरा खत तो नहीं है जो🔸 जला ना सकूं !
न हम-सफर न🔸 किसी हम नशीं से निकलेगा,
हमारे पाँव का काँटा है हमीं 🔸से निकलेगा !
राह के पत्थर से 🔸बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज देते हैं सफर 🔸जारी रखो !
कहीं अकेले में मिल🔸 कर झिंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ जहाँ से 🔸वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे
रोज़ तारों को 🔸नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल 🔸पड़ता है
मोड़ होता है जवानी 🔸का सँभलने के लिए
और सब लोग यहीं आ के फिसलते 🔸क्यूं हैं
एक चिंगारी 🔸नज़र आई थी
नींद से मेरा ताल्लुक़ ही 🔸नहीं बरसों से
ख़्वाब आ आ🔸 के मेरी छत पे टहलते क्यूं हैं
जुबां तो खोल, 🔸नजर तो मिला, जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ, ज़िंदगी 🔸हिसाब तो दे
फूलों की दुकानें🔸 खोलो, खुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है तो, ये खता 🔸एक बार नहीं, सौ बार करो
बहुत हसीन🔸 है दुनिया
आँख में पानी रखो होंटों🔸 पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो 🔸तरकीबें बहुत सारी रखो
बहुत ग़ुरूर है दरिया🔸 को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से 🔸उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं
मैं बच 🔸भी जाता तो…
किसने दस्तक दी, दिल🔸 पे, ये कौन है
आप तो 🔸अन्दर हैं, बाहर कौन है
मेरा नसीब, मेरे हाथ 🔸कट गए वरना
मैं तेरी माँग में 🔸सिन्दूर भरने वाला था
अंदर का 🔸ज़हर चूम लिया
अंदर का ज़हर चूम लिया🔸 धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे 🔸सब खुल के आ गए
सूरज सितारे🔸 चाँद मेरे साथ में रहें,
जब तक तुम्हारे हाथ🔸 मेरे हाथ में रहें !
फूलों की दुकानें🔸 खोलो खुशबू का व्यापार करो,
इश्क खता है तो ये खता एक बार नहीं 🔸सौ बार करो !
मोहब्बत आपके🔸 दिल से हो गई एक
राहत थी अब खुदा की 🔸रहमत हो गई !
उस की याद 🔸आई है, साँसों ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनो से भी इबादत 🔸में ख़लल पड़
आँख में पानी🔸 रखो होंटों पे चिंगारी रखो,
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें 🔸बहुत सारी रखो !
उस आदमी को🔸 बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया 🔸इसे ख़राब करूं
ये हादसा तो किसी🔸 दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक रोज 🔸मरने वाला था
हम से पहले भी 🔸मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर 🔸तो हटाते जाते
इन रातों से अपना🔸 रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है
नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब🔸 छतों पर बिखरे हैं
ऐसी सर्दी🔸 है कि सूरज भी दुहाई मांगे
जो हो परदेस में वो किससे रजाई मांगे !
दो ग़ज सही ये 🔸मेरी मिल्कियत तो है
ऐ मौत तूने मुझे जमींदार🔸 कर दिया।
रोज़ तारों को🔸 नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अंन्धेरे में 🔸निकल पड़ता है।
छू गया जब 🔸कभी ख्याल तेरा
दिल मेरा देर तक 🔸धड़कता रहा।
कल तेरा जिक्र छिड़ गया🔸 था घर में
और घर देर 🔸तक महकता रहा।