हर रोज़ गिर 🔸कर भी मुकम्मल खड़े हैं
ए ज़िन्दगी देख मेरे होंसले🔸 तुझसे भी बड़े हैं
तमाम उम्र 🔸अज़ाबों का सिलसिला तो रहा,
ये कम नहीं हमें जीने का 🔸हौसला तो रहा।
पहले भी जीते थे, 🔸मगर जब से मिली है जिंदगी,
सीधी नहीं है, दूर तक 🔸उलझी है जिंदगी,
अच्छी 🔸भली थी दूर से, जब पास 🔸आई खो गई,
जिसमें न आए कुछ नजर 🔸वो रोशनी है जिंदगी।
ज़िन्दगी सिर्फ 🔸मोहब्बत नहीं कुछ और भी है,
ज़ुल्फ़-ओ-रुखसार की जन्नत नहीं🔸 कुछ और भी है,
भूख और🔸 प्यास की मारी हुई इस दुनिया में,
इश्क ही इक हकीकत🔸 नहीं कुछ और भी है।
आराम से तन्हा 🔸कट रही थी तो अच्छी थी,
ज़िन्दगी तू कहाँ दिल की बातों 🔸में आ गयी।